नूतन ने अपना अभिनय करियर 14 साल की छोटी सी उम्र में आरंभ किया था। नूतन की माँ शोभना समर्थ अपने दौर की नामचीन अभिनेत्री थीं और अभिनय की इसी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए शोभना समर्थ ने अपनी प्रतिभाशाली बेटी नूतन को ‘हमारी बेटी’ में हीरोइन बनाकर परदे पर प्रस्तुत किया था। 1950 में प्रदर्शित ‘हमारी बेटी’ अपनी पहली ही फिल्म में नूतन ने अपनी प्रतिभा से हर किसी को चौंका दिया। नूतन को फिल्मों में प्रस्ताव मिलने लगे किंतु उन्होंने बहुत सोच समझकर एक-एक फिल्म साइन की। अगले साल 1951 में नूतन की दो फिल्में ‘हम लोग’ और ‘नगीना’ प्रस्तुत हुई और उनके नाम का तहलका मच गया। 1952 में नूतन ने ‘मिस इंडिया’ का खिताब जीता और वे स्टारडम की मंजिलों को छूने लगीं। दिलीप कुमार उस दौर के स्टार अभिनेता थे और नूतन को जब ‘शिकवा’ नामक फिल्म में दिलीप कुमार के साथ हीरोइन का सबसे बड़ा अवसर मिला तो नूतन सफलता के आकाश पर उड़ रही थीं। किंतु दुर्भाग्यवश ‘शिकवा’ की कुछ ही शूटिंग हो पायी थी कि नूतन गंभीर रूप से बीमार हो गयीं और माँ शोभना समर्थ ने बेटी को इलाज के लिए स्विट्जरलैंड भेज दिया। स्विट्जरलैंड में लंबे समय तक नूतन का इलाज होता रहा और ‘शिकवा’ का निर्माण बंद हो गया। दो साल के अंतराल के बाद नूतन स्वस्थ होकर स्वदेश लौटीं और फिर से कैमरे के सामने काम शुरू किया। 1955 में नूतन ने ‘सीमा’ फिल्म सबसे पहले पूरी की और जब यह फिल्म प्रदर्शित हुई तो नूतन ने स्टारडम में छोड़ी अपनी जगह फिर हासिल कर ली।
‘सीमा’ के बाद ‘सुजाता’, ‘दिल्ली का ठग’, ‘अनाड़ी’, ‘लाईट हाऊस’, ‘कभी अंधेरा कभी उजाला’, ‘चंदन’, ‘सोने की चिड़िया’, ‘खानदान’, ‘गौरी’, ‘मेहरबान’, ‘भाई बहन’, ‘छलिया’, ‘कन्हैया’, ‘बसंत’, ‘दिल ही तो है’, ‘बंदिनी’, ‘मिलन’, ‘दिल ही तो है’, ‘बंदिनी’, ‘मिलन’, ‘सरस्वतीचंद्र’, ‘सौदागर’, ‘साजन बिना सुहागन’, ‘मैं तुलसी तेरे आंगन की’ जैसी सैंकड़ों फिल्में आयीं और अभिनेत्री के रूप में नूतन ने फिल्म जगत में एक ऐसा विशेष स्थान हासिल कर लिया जो हर अभिनेत्री को हासिल नहीं होता। 1950 से लेकर 1980 तक नूतन परदे पर बेजोड़ अभिनेत्री के रूप में छायी रहीं। 1980 के बाद नूतन का अभिनय अपनी सुगंध के साथ परदे पर सुगंधित था किंतु एक नायिका के रूप में अब उन्हें फिल्में नहीं मिल रहीं थीं तो उन्होंने वही फिल्में लीं जिनमें केंद्रीय भूमिका नूतन की ही होती थी। अभिनेत्रियों की कई नयी पीढ़ी आती-जाती रहीं और 1980 में तो नयी पीढ़ी की बाढ़ सी आ गयी और नूतन को मां, चाची, भाभी, मौसी की भूमिकाओं के प्रस्ताव आने लगे किंतु नूतन ने फिल्मों में अवकाश लेना अधिक पसंद किया।
अंतत: 1985 में नूतन फिर परदे पर लौटीं और इस बार वे मां की यादगार भूमिका में ‘मेरी जंग’ में काम कर रही थीं। ‘मेरी जंग’ में नूतन की मां वाली भूमिका इतनी स्वाभाविक और प्रभावशाली थी कि उन्हें फिल्म की रिलीज के तुरंत बाद ही दर्जन भर बड़ी फिल्मों में मां की भूमिकाओं के प्रस्ताव मिले किंतु नूतन ने केवल एक फिल्म ‘कर्मा’ स्वीकार की और ग्यारह फिल्में ठुकरा दीं। यही कारण था कि 1986 में नूतन की केवल एक यही फिल्म प्रदर्शित हुई। ‘कर्मा’ में नूतन ने उसी अभिनेता दिलीप कुमार की पत्नी की भूमिका की थी जिनके साथ करियर के आरंभिक दौर में नूतन की फिल्म ‘शिकवा’ शुरू होकर बंद हो गयी थी। अंतर केवल इतना था कि ‘शिकवा’ में नूतन दिलीप कुमार का नायिका थीं किंतु ‘कर्मा’ में एक चरित्र अभिनेत्री।
बहुत कम लोग जानते होंगे कि नूतन एक बहुत अच्छी गायिका थीं। अभिनय के जगत में आने से पहले वे संगीत की शिक्षा ले रही थीं और नूतन के संगीत शिक्षक वही थे जिन्होंने विख्यात गायक मुकेश को भी संगीत की शिक्षा दी थी। अभिनय से पहले नूतन को फिल्मों में गाने के लिए कई प्रस्ताव मिले थे किंतु नूतन ने गायन के बदले अभिनय को ही अपने करियर के लिए चुना। नूतन ने जहाज के कप्तान रजनीश बहल के साथ विवाह किया था और पति बहल ने अपने शिकार के शौक को नूतन को भी सिखा दिया था। नूतन खुद भी जंगलों में जाकर छोटे-छोटे जानवरों का शिकार करने लगी थीं। नूतन ने अपने दौर के हर नामचीन और कुशल अभिनेता के साथ काम किया जिनमें मोतीलाल से लेकर दिलीप कुमार, अशोक कुमार, राज कपूर, सुनील दत्त, देव आनंद, किशोर कुमार और अमिताभ बच्चन तक शामिल हैं। नूतन की परदे की जिंदगी और निजी जिंदगी में जमीन-आसमान का फर्क था। परदे पर पारंपरिक भारतीय नारी की देवी वाली छवि रचने वाली नूतन वास्तविक निजी जीवन में पाश्चात्य संस्कृति की छाया में जीती थीं। परदे पर अधिकतर सादगीपूर्ण साड़ी पहन कर अपने पात्रों का अभिनय जीने वाली नूतन घर में जींस-टी शर्ट पहनना पसंद करती थीं।
अभिनेत्री नूतन के जीवन और करियर में सबसे अधिक चर्चित और विवादास्पद घटना वह थी जब उन्होंने एक फिल्म के सेट पर जाकर अभिनेता संजीव कुमार के चेहरे पर ऐसा थप्पड़ मारा था कि उस थप्पड़ की गूंज पूरे फिल्म संसार में गुंजायमान हो गयी थी। वास्तव में यह एक ऐसी घटना थी जिसे नूतन जैसी गरिमामयी अभिनेत्री के साथ जोड़ने की कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। वास्तव में यह घटना 1967 में ‘गौरी’ फिल्म के सेट पर ‘फिल्मिस्तान स्टूडियो’ में घटी थी। नूतन उस समय तक एक बेटे ‘मोहनीश बहल’ की मां बन चुकी थीं और अफवाहें थीं कि संघर्षशील अभिनेता संजीव कुमार के साथ नूतन का अफेयर चल रहा है। यह अफवाहें इतनी गरम हो गयीं कि नूतन के निजी और वैवाहिक जीवन में तूफान खड़ा हो गया। यह भी सुनने में आया कि नेवी की नौकरी के कारण पति रजनीश बहल अधिकतर घर से बाहर महीनों महीनों तक जहाज पर रहते थे और नूतन का अफेयर संजीव कुमार के साथ चल पड़ा था। अफवाहों का बाजार गरम था और इसका एक प्रमुख कारण यह था कि न तो संजीव कुमार और न ही नूतन की ओर से अफवाहों का खंडन किया जा रहा था। एक दिन खबर उड़ी कि संजीव कुमार ने अपनी करीबी मित्रों को बताया है कि वह नूतन से प्यार करता है और उसके पास नूतन के लिखे प्रेम पत्र हैं। यह खबर नूतन के पति रजनीश बहल तक पहुंची तो वे क्रोध से आग-बबूला हो गए। घर में पति-पत्नी के बीच घमासान छिड़ गया। नूतन ने पतिदेव को लाख समझाया कि यह सब मात्र अफवाहें हैं। सच यह है कि उनका संजीव कुमार से कोई लेना-देना नहीं है। किंतु पति बहल पत्नी की बात पर विश्वास करने को तैयार नहीं थे। बहल ने नूतन से कहा कि अपनी बात को सच साबित करने के लिए उन्हें सारी यूनिट के सामने भरे सेट पर संजीव कुमार के गाल पर थप्पड़ मारना पड़ा। नूतन पति बहल को लेकर ‘गौरी’ के सेट पर फिल्मिस्तान स्टूडियो पहुंचीं और उसी दिन पूरे फिल्म संसार में जंगल की आग की तरह नूतन के थप्पड़ मारने की खबर फैल गयी। अगली सुबह देश के सारे समाचार पत्रों में यह खबर सुर्खियों के साथ छपी थी। असल में नूतन ने संजीव कुमार को थप्पड़ मार कर अपनी अभिनेत्री की छवि और गरिमा को भी बचाया था जो अफवाहों के कारण नष्ट हो रही थी।
यह नूतन के लिए दुर्भाग्य की ही बात थी कि थप्पड़ कांड के बाद भी नूतन अपने वैवाहिक जीवन और घर को टूटने से न बचा सकीं। कुछ समय बाद ही पति बहल के साथ नूतन का संबंध विच्छेद हो गया और किसी को इस बात को भनक तक न लगी। 1990 में खबर आई कि नूतन कैंसर से ग्रस्त है। अंततः 1991 में फिल्मों की यह अनमोल अभिनेत्री इस दुनिया से विदा हो गयी और सदा के लिए अमर हो गयी।